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कुछ कहें … चल उड़ चलें नीले नीले नभ में

छायाकार “कुंतल भारद्वाज” के क्लिक में … !

चंचल मन इतराता है फिर, कहता है जी भर के उड़ ले … करले अपनी हसरत पूरी, सारी कड़ियाँ तोड़ के जी ले …
शायद कुछ ऐसी कविता की पक्तियाँ रही होगी महिला छायाकार “कुंतल भारद्वाज” के मन में … इधर उधर की भाग दौड़ की ज़िंदगी में जब भी मौक़ा हाथ लगा, साथी मोबाइल पर क्लिक किया … और वों क्षण एक तस्वीर में तब्दील हो गया … सुंदर नीली आभा के ये सारे छायाचित्र भी कहीं ना कहीं उसी “उड़ान” की ओर इशारा करते से प्रतीत होते हैं … वाक़ई बेहद सकून देते हैं ऐसे छायाचित्र … !

“कुंतल” विविध विधाओं में अपनी पहचान बनाने और छोड़ने की प्रक्रिया से गुजरतें हुवें … जब भी जी चाहा और विषय सामने हुआ तब झट से क्लिक कर लेती हैं … मैं भी एक कला मेले के एक स्टाल पर “कुंतल” से रूबरू हुआ था … काफ़ी सारे छायाचित्र वहाँ उन्होंने प्रदर्शित किये थें … मैं उन्हें देख विस्मित था … आनंदित था … तब इस श्रृंखला की कुछ कड़ियों में वो विस्मय आपके साथ साझा कर रहा हूँ … !

॰ छायाकार “कुंतल भारद्वाज” का संक्षिप्त परिचय
जन्म तिथि : 06 मार्च 1975

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